ऐसा मंदिर जहां होती है माता के सिर की पूजा | Shree Sundha Mata Mandir

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पौराणिक ग्रंथो के अनुसार हमारे हिंदू धर्म में 33करोड़ देवी देवता माने गए है। इन सभी देवी देवताओ के पूजन भक्त अपने अपने ढंग से करते है।

हमारे हिंदू धर्म मे पशु पक्षी, हवा, पानी, पेड़ पोधों तथा पृथ्वी को भी देवी देवताओ के रूप मे पूजा जाता है। हर हिंदू अपने कूल के अनुसार देवी देवताओ की पूजा करते है। देश के हर हिंदू की देवी देवताओ के प्रति अटूट श्रद्धा तथा अटूट विश्वास होता है।

सुंधा माता मंदिर का इतिहास 

आज हम आपको बताएँगे शक्ति स्वरूप देवी मां चामुण्डा जिनका मंदिर सुंधा माता पहाड़ी पर स्थित है। इसीलिए मां चामुण्डा को यहां सुंधामाता नाम से पुकारते है। यहां पर माताजी के धड़ की पूजा होती है। यहां माता चामुण्डा का भव्य तथा विशाल मंदिर बना हुआ है।

यह मंदिर लगभग 900 साल पुराना है। हर महीने लाखों भक्त माता के दर्शन को आते है। हर महीने के शुक्ल पक्ष के चौदस तथा पूर्णिमा को भक्तों का विशाल मेला रहता है। चमत्कारी देवी के मंदिर में देश के कोने-कोने राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। श्री सुंधा माता मंदिर में देवी माता के सिर की पूजा की जाती है।

मां चामुंडा का मंदिर चमत्कारों से भरा है। श्री चामुंडा मां सभी भक्तों की मांगी मनोकामना पूरी करती हैं। सुंधामाता मंदिर अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों के ऊपरी भाग में स्थित है। मंदिर के आसपास रहने घूमने खाने पीने की उत्तम व्यवस्था है। आइए आपको सुंधा माता मंदिर कहां स्थित है,कैसा है तथा वहां पर क्या व्यवस्था रहती है भक्तो के लिए , के बारे में बताते है।

सुंधामाता का मंदिर कहां स्थित है?

सुंधामाता मंदिर राजस्थान राज्य के जालोर जिले की जसवंतपुरा तहसील से लगभग 20km, भीनमाल से 25km तथा रानीवाड़ा से 30km दूर राजपुरा गांव के पास पहाड़ी पर स्थित है। सुंधा माता मंदिर विशाल परिसर में फैला हुआ है। यहां मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। आइए अब आपको वहां पर घूमने की अन्य जगह के बारे में बताते है।

सुंधामाता किस कुल की कुलदेवी है?

सुंधामाता जालोर के राजवंश की कुलदेवी है इसके अलावा सुंधा माता राजपूतो के देवल कुल, माली जाती के सुंदेशा कुल, ब्राह्मण जाती, रबारी जाती तथा अन्य कई जातीओ की कुलदेवी है यहाँ पर सभी जातियों के लोग माताजी के दर्शन के लिए आते है

सुंधामाता के प्रकट होने की स्थानीय कथा:- माताजी तथा गाय चराने वाले भावा जी रबारी की कथा

यहां के स्थानीय लोगों के अनुसार चामुंडा माता ने अपना हिंडा यहां के पहाड़ों में बांधा हुआ था। माता जी के पास एक गाय थी जिसको भावा रबारी अपनी गायों के साथ चराने लेके जाता था। एक दिन भावा जी रबारी गाय को चराने का मेहनताना मांगने गया तो माता जी ने उसको गेंहू से भरी हुई पोटली दे दी।

भावा रबारी को लगा कि गेंहू को घर लेकर जाकर क्या करूंगा तो उसने गेंहू को वही कबूतरखाने में पक्षियों के चुग्गे के लिए डाल दिए। जब भावा रबारी घर गया तो उसको घरवाली ने पूछा की गाय की सेवा में आपको क्या मिला तो भावा रबारी ने बताया कि गेंहू की पोटली दी थी जिसको वो पक्षियों को चुग्गे के लिए देके आया।

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तब भावा रबारी की घरवाली की नजर गेंहू की खाली पोटली पर पड़ी तो देखा कि कपड़े परे हीरे चमक रहे है। तब भावा रबारी को समझ आया की वो कोई दिव्य माता का रूप है। तब माता सुंधा ने भावा रबारी को दर्शन दिए तथा उनको कहां की आज से में सुंधा पर्वत पर सुंधामाता के नाम से पूजी जाऊंगी। तथा वो अंतर्ध्यान हो गई।

तब से माँ चामुंडा की पूजा यहाँ सुंधामाता के रूप मे होती है। सुंधामाता  के मंदिर मे माता के सिर की पूजा होती है।

सुंधामाता माता के सिर्फ सिर की पूजा क्यों होती है

पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि राजा दक्ष के द्वारा आयोजित यज्ञ में भगवान शिव को नहीं बुलाया गया जिससे माता सती ने क्रोधित होकर यज्ञ की अग्निकुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया इससे भगवान शिव गुस्सा होकर माता सती के शव को हाथो में लेकर तांडव करने लगे।

उस समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के टुकड़े टुकड़े कर दिए। जहां जहां माता सती के शव के टुकड़े गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए । सुंधामाता में माता सती का सिर गिरा था इसलिए यहां सिर की पूजा होती है।

सिर की पूजा होने के कारण सुंधामाता को अघटेश्वरी देवी भी कहां जाता है।

माताजी को पहले बलि तथा मदिरा चढ़ाया जाता था 

पुराने समय मे माता को बलि तथा शराब का भोग लगाया जाता था लेकिन वर्तमान समय में यह सभी कर्म बंद कर दिए गए है। सुंधामाता मंदिर में भी पहले मदिरा तथा बलि देने की प्रथा थी लेकिन 1976 में ट्रस्ट बनने के बाद मधपान तथा बलि को निषेध कर दिया गया।

सुन्धामाता मंदिर के आसपास घूमने के पर्यटक स्थल

सुंधा माता मंदिर पहाड़ी पर स्थित है, इसीलिए आपको कम से कम 3km आपको सीठियो के द्वारा चढ़ना पड़ेगा।

अगर कोई सीढियां चढ़ना नही चाहते है तो उनके लिए रोपवे की सुविधा भी है। राजस्थान राज्य का पहला रोपेवे सुंधा माता  मंदिर पर बना हुआ है।

ऊपर चढ़ने के बाद आपको अलग अलग भगवान के मंदिर के दर्शन होंगे लेकिन मुख्यत्त मंदिर सुंधामाता का है। जो सफेद संगमरमर का बना हुआ है। वहां प्रकृति से जुड़ी बहुत सारी चीज़ें आपको देखने को मिलेगी। जिससे आपको आनंद की अनुभूति होगी।

वहां पर आपको पार्क, बहते हुए पानी के झरने , रेत के बड़े बड़े टीले, ट्रैकिंग के लिए अच्छे माध्यम है। सुंधा माता मंदिर के आसपास पहाड़ी इलाका है।

सुंधामाता मंदिर के साथ साथ यह हनुमान जी, विष्णु भगवान, नवदुर्गा माताजी तथा महाकाली का मंदिर भी है।

मंदिर के नीचे खुले परिसर में एक गौ मुख है जहां हर दिन निरंतर पानी निकलता रहता है कभी बंद नही होता है। मंदिर के अंदर एक गुफा है जिसका दूसरा सिरा कहां खुलता है उसका आज तक कोई पता नहीं लगा पाया है। 

मंदिर परिसर में अलग अलग समाज की धर्मशाला भी है जहा भक्त रात्रि विश्राम कर सकते है। सुन्धामाता  मंदिर के आसपास अन्य कई पर्यटक स्थल है जहां पर्यटक घूमने जा सकते है आइए जानते है आसपास के पर्यटक स्थल के बारे मे

  1. खोड़ेश्वर महादेव मंदिर (Khodeshwar Mahadev Mandir)

सुंधामाता मंदिर से लगभग 15km दूर खोड़ेश्वर महादेव का मंदिर है, जहां पर आपको प्राकृतिक रूप से नाहने के लिए बारिश का पानी बहता हुआ मिलेगा। ऐसे वातावरण का लुफ्त उठाने के लिए सावन के महीने मे हजारो भक्त यहाँ आते है। कई बार तो यहाँ आपको भालू तथा अन्य जीव जन्तु देखने को मिल जाते है। अधिक जानकारी के लिए खोड़ेश्वर महादेव का instaprofile- khodeswar eco tourism पर आप सर्च कर सकते है।

2. देवेश्वर महादेव मंदिर 

खोड़ेश्वर महादेव मंदिर के पास मे ही देवेश्वर महादेव का मंदिर है जहां प्रकृति की सुंदरता देखते ही बनती है। पहाड़ो के बीच मे आए हुए महादेव जी का मंदिर तथा  सावन के महीने मे बारिश के पानी से पहाड़ो से निकलते हुए झरने पर्यटको के आनंद को दुगुना कर देते है। 

3. क्षेमकरी माता मंदिर भीनमाल (Kshemkari Mata Mandir)

सुन्धामाता मंदिर से 25km दूर भीनमाल शहर मे माँ क्षेमकारी पहाड़ो पर विराजमान है। यहाँ पर माता के भक्तो की संख्या लाखो मे है। माँ क्षेमकारी सोलंकी कूल की कुलदेवी है। यहाँ की आरती के समय सभी भक्त साथ मे अपनी खुद की आवाज मे आरती करते है। आरती का यह मनोरम दृश्य आंखो मे समा जाता है।

4. जैन धर्म के बड़े तीर्थो में शामिल 72जीनालय जैन मंदिर (72 Jinalaya)

सुन्धामाता से 25km दूर भीनमाल शहर मे जैन धर्म का प्रसिद्ध मंदिर 72जीनालय स्थित है। जैन तीर्थ स्थलो मे इस मंदिर को बड़े मंदिरो मे माना गया है। पर्यटको के लिए यहाँ  घूमने गार्डन के लिए बनाया हुआ है।

 सुन्धामाता मे रहने की व्यवस्था

रहने के लिए माताजी के दरबार मे ऊपर पहाड़ो मे कई धर्मशालाओ की व्यवस्था है जहा पर आप एकदम कम कीमत मे रूम रेंट पर मिल जाता है। ज़्यादातर धर्मशालाओ मे निशुल्क रहने की व्यवस्था है।

सुन्धामाता मंदिर खुलने का समय(Darshan Timing)

माताजी मंदिर के पट पूजारी के द्वारा नित्य सुबह 4.00 बजे खोला जाता है। उसके बाद पुजारी के द्वारा माताजी का स्नान तथा श्रृंगार किया जाता है। जिसके लिए 3घंटे का समय लगता है। उसके बाद प्राप्त 7बजे भक्तो के लिए माताजी के मंदिर का द्वारा सुबह की आरती के साथ खोला जाता है।

फिर पूरे दिन भक्त दर्शन कर सकते है। शाम को 7बजे के आसपास शाम की आरती की जाती है। रात्रि को 9 बजे मंदिर के पट को बंद कर दिया जाता है।

माता जी के प्रतिदिन लाइव दर्शन के लिए गूगल मे sundha mata live darshan सर्च करे, यहाँ आपको माताजी के लाइव दर्शन घर बैठे हो जाएंगे।

सुन्धामाता रोपवे का समय

सुबह 7.30 से शाम 7बजे तक।

सुन्धामाता भोजनशाला का समय

  • दोपहर 10.00बजे से 2.00बजे तक
  • शाम 8.00बजे से 10.00 बजे तक
  • भोजनशाला शुल्क – 10रूपीये प्रति सदस्य

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