Dah Sanskar- हिन्दू धर्म में मृत शरीर जलाना क्यों जरूरी?

हमारे हिन्दू धर्म में आदिकाल से इंसान के मरने के बाद उसके शरीर को पंचतत्व में विलीन कर दिया जाता है मृत शरीर को जलाना महत्वपूर्ण है। हिन्दू धर्म में मृत शरीर को जलने के पीछे कई कारन है आईये जानते है हिन्दू धर्म में मृत शरीर को क्यों जलाते है।

हिन्दू धर्म में मृत शरीर जलाना क्यों जरूरी

हिंदू धर्म में इसलिए मृत शरीर को जलाया जाता है क्योंकि जब तक शरीर को जलाया नहीं जाता, तब तक आत्मा शरीर के आसपास ही भटकती रहती है।

किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद आत्मा उसके चारों ओर चक्कर लगाने लगती है और दोबारा शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करती है। मरने के बाद भी इंसान की आत्मा अपनी पुरानी जगह को पहचानती है और उससे प्यार करती है। आत्मा शरीर से दूर नहीं जाती, इसीलिए हमारे पूर्वजों ने कई सदियों पहले ही समझ लिया था कि शरीर को बचाना ठीक नहीं है। उन्होंने उसे तुरंत जलाकर पंचतत्व में मिला दिया।

यही कारण है कि हिंदू धर्म में शवों को कब्र में नहीं रखा जाता है। क्योंकि इससे आत्मा की यात्रा में अनावश्यक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। जब तक शरीर का थोड़ा सा भी अंश शेष रहता है, तब तक आत्मा मृत शरीर के चारों ओर चक्कर लगाती रहती है।

जैसे ही हम किसी शव को जलाते हैं, वैसे ही जैसे किसी का घर पूरी तरह नष्ट हो जाता है, खंडहर भी नहीं बचता और आत्मा को वहां भटकने का कोई कारण नहीं रहता। अब वहां केवल राख ही राख रह गई है और वहां रहने का कोई प्रयोजन नहीं है। इसलिए वह बाद में अपने लिए उचित जगह की तलाश करेगी।

जब हमारे शरीर का अंत हो जाता है तो आत्मा नए गर्भ में प्रवेश करने के लिए बेहद उत्सुक रहती है। यह प्रक्रिया लालसा से शुरू होती है। इसीलिए हम कहते हैं कि जिसे इच्छाओं से लगाव नहीं है उसका पुनर्जन्म नहीं होता, क्योंकि इसका कोई कारण नहीं है। सभी शरीर इच्छा के आधार पर निर्मित होते हैं और इच्छा ही उनका मूल है। जब कोई व्यक्ति इच्छाओं से मुक्त हो जाता है, कुछ भी प्राप्त नहीं करता है और सब कुछ जान लेता है, तो उसे नए गर्भ में जन्म लेने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

सनातन धर्म में कहा गया है कि आत्मा अनंत यात्रा पर है और जब तक उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो जाती, वह अपने कर्मों के अनुसार अपनी यात्रा जारी रखती है। मानव जीवन ही एकमात्र ऐसा सन्दर्भ है जिसमें यह यात्रा पूरी की जा सकती है।

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