कामाख्या माता की तंत्र साधना तथा काला जादू का रहस्य | Kamakhya Temple
कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य तथा इतिहास
भारत में 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ कामख्या मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध तथा रोचक है। कामाख्या माता तांत्रिको तथा अघोरियो की महत्वपूर्ण देवी है इसीलिए यह मंदिर अघोरियों तथा तांत्रिको के लिए बहुत उपयोगी है। यहां के तांत्रिक बड़ी बड़ी तंत्र विद्या जानते है।
आज हम आपको माता कामाख्या देवी के मंदिर में किसकी पूजा होती है तथा यहाँ पर तंत्र साधना विधि ज्यादा क्यों होती है ,इसके बारे में हम विस्तार से बताएंगे
कामाख्या माता का मंदिर कहाँ स्थित है?
असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 7km दूर नीलांचल पर्वत से 10km दूर स्थित है। मां कामख्या का मंदिर 51 शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है। 51 शक्तिपीठों में से सबसे शक्तिशाली मंदिर है।
इस मंदिर में ना कोई मूर्ति है और ना ही कोई चित्र जिसकी पूजा हो। इस मंदिर में फूलो से ढका एक कुंड है जहा से सालभर निरंतर पानी निकलता रहता है,यह पानी कहा से आता है और सूखता क्यूं नी इसका पता अभी तक कोई नही लगा पाया है। यह कुंड हमेशा फूलो से ढका रहता है।
कामाख्या देवी मंदिर कब जाना चाहिए?
अगर आप माता कामाख्या देवी मंदिर जाने का सोच रहे है तो वहाँ जाने का सबसे सही और उपयुक्त समय दिवाली पर्व के बाद अक्टुम्बर महीने से मार्च महीने तक का होता है। इस समय में आप वहाँ के मौसम और अन्य पर्यटक स्थलों का आनंद उठा सकते है।
कामाख्या देवी मंदिर में किस चीज़ की पूजा होती है?
मां कामख्या देवी के मंदिर में योनि की पूजा होती है। धर्मपुराणो के अनुसार माना जाता है कि भगवान शिव का मां सती के प्रति मोहभंग करवाने के लिए भगवान विष्णु ने चक्र से माता सती के 51 भाग किए जो देश में अलग अलग जगह गिरे और जहा गिरे वो शक्तिपीठ कहलाते है।
इस शक्तिपीठ पर माता सती की योनि का भाग गिरा इसीलिए यहां योनि की पूजा होती है। योनि का भाग यहां होने से माता यहाँ रजस्वला भी होती है। वैसे तो सालभर यहां भक्तो की भीड़ रहती है लेकिन दुर्गापूजा,वसंतीपूजा, दुर्गादेउल,अंबुवासी तथा मनासा पूजा के दिन लाखो भक्तो की भीड़ रहती है।
यहां इन दिनों का अलग ही महत्व है जिससे इन पूजा के दिनो मे बहुत भीड़ रहती है। अम्बुवासी मेले के दिन मंदिर के पास से चलने वाली नदी का पानी लाल हो जाता है।
कामाख्या देवी मंदिर में ब्लडिंग कैसे होती है?
हर साल यहां अम्बुवासी मेला लगता है। इस मेले के समय मंदिर के पास से चलने वाली ब्रह्रापुत्र नदी का पानी 3 दिन के लिए लाल हो जाता है। माना जाता है कि पानी का लाल रंग माता के मासिक धर्म के कारण होता है। इन 3 दिनो के लिए मंदिर का गर्भगृह बंद रहता है 3 दिन बाद माता के मंदिर के दरवाजे खोले जाते है।
यहां पर आने वाले भक्तो के लिए अन्य मंदिर के अपेक्षा अलग ही प्रसाद दिया जाता है। ऐसा प्रसाद किसी और मंदिर में भक्तो को नही दिया जाता है।
कामाख्या देवी मंदिर का विशेष प्रसाद
धर्मपुराणों के अनुसार माना जाता है कि जब माता के रजस्वला का समय होता है तब मंदिर के अंदर सफेद कपड़ा बिछाया जाता है जिससे माता के मासिक धर्म में निकलने वाले खून से सफेद कपड़ा लाल हो जाता है। इस गीले लाल कपड़े का प्रसाद भक्तो को दिया जाता है।
यहां पर आने वाले सभी भक्तो की मनोकामनाए पूरी होती है। यहां पर लोग बच्चे मांगने बीमारी से ठीक होने की मन्नत लेकर आते है जो पूरी भी होती है। माता कामख्या का मंदिर बहुत ही रोचक है।
कामाख्या मंदिर तंत्र साधना के लिए क्यों प्रसिद्ध है?
कामाख्या देवी मंदिर को कालू जादू तथा तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। यहाँ पर तंत्र मंत्र करने वाले बाबा तथा अघोरि बड़ी संख्या में आते है। काला जादू से ग्रसित इंसान यहाँ आकर अपनी परेशानी से छुटकारा पा सकते है। माँ कामाख्या को तंत्र साधना की देवी माना जाता है इसीलिए यहाँ तंत्र मंत्र करने वाले तांत्रिक ज्यादा संख्या में आते है।
कामाख्या देवी में पुरुषों को जाना कब वर्जित क्यों ?और क्यों?
माता कामाख्या देवी के मंदिर में पुरुषो का जाना वर्जित नहीं है लेकिन विशेष समय जब माता के मासिक धर्म शुरू होते है उस समय ३ दिन के लिए माता के दर्शन पुरुष नहीं कर सकते है
माता कामाख्या का मासिक धर्म या ब्लडिंग कब होती है?
माता कामाख्या का मासिक धर्म हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ महीने की सप्तमी को माता का मासिक धर्म शुरू होता है ।
कामाख्या देवी मंदिर दर्शन करने के खुलने का समय
सुबह – 8.00 से 1.00 बजे तक
दोपहर – 2.30 से 5.30 बजे तक
शाम को आरती के बाद देवी के मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते है।
माता कामाख्या देवी के कपाट पूर्ण बंद कब होते है?
हर साल आषाढ़ महीने के सप्तमी से नवमी तक मंदिर के कपाट पूर्णतया बंद रहते है।
कामाख्या देवी मंदिर पर नदी का पानी लाल क्यों हो जाता है?
हर साल अषाठ महीने में लगने वाले अम्बुवासी मेला के समय माताजी का मासिक धर्म शुरू होता है। देवी के मासिक धर्म से निकलने वाले रक्त से वहाँ पर बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का पानी 3 दिन के लिए लाल रंग का हो जाता है। इन 3 दिनो के लिए मंदिर का गर्भगृह बंद रहता है 3 दिन बाद माता के मंदिर के दरवाजे खोले जाते है।