मातारानी वैष्णोदेवी के मंदिर का इतिहास Mata Vaishno Devi
त्रिकुटा पहाड़ी पर मातारानी विराजमान है। त्रिकुटा पहाड़ी पर एक गुफा में माता वैष्णो देवी की स्वयंभू तीन मूर्तियां है। दाई तरफ माता काली, बाई तरफ माता सरस्वती तथा मध्य में माता लक्ष्मी पिंडी के रूप में गुफा में विराजमान है। इन तीन पिंडियों के सामूहिक रूप को माता वैष्णोदेवी कहा जाता है। इस गुफा को माता का भवन कहा जाता है। इस गुफा की लंबाई 98फीट है। इस गुफा में एक बड़ा चबूतरा बना हुआ है, इस चबूतरे पर माता का आसन है जहा देवी त्रिकुटा अपनी माताओं के साथ विराजमान रहती है।
मंदिर की पवित्र गुफा को “अर्धक्वारी” के नाम से जाना जाता है। इसके पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते भागते पीछे मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। मंदिर के पास ही एक नदी गुजरती है जिसका नाम बान गंगा नदी है। माना जाता है कि माता ने अपने दिव्य बाण चलाकर इस नदी को प्रकट किया था।
इसी भवन में माता वैष्णोदेवी ने भैरवनाथ का वध किया था। प्राचीन गुफा में भैरो का शरीर मौजूद है और उसका सिर 3km. दूर उड़कर पहाड़ी पर गिरा। उस पहाड़ी का नाम भेरुनाथ पहाड़ी कहते है और जहा भेरुनाथ का सिर गिरा वहा भेरुनाथ का मंदिर है। माना जाता है कि मातारानी के दर्शन के बाद अगर भेरूजी के दर्शन नहीं करते है तो माता के दर्शन करने का कोई फल नहीं मिलता है इसीलिए भक्त मातारानी के दर्शन के बाद भेरूजी के दर्शन करते है।
माता वैष्णो देवी का मंदिर कहा स्थित है?
माता वैष्णोदेवी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर जम्मू कश्मीर के जम्मू क्षेत्र में कटरा नगर के पहाड़ियों पर स्थित है। जिस पहाड़ी पर माता का मंदिर है उस पहाड़ी को त्रिकुटा पहाड़ी के नाम से जाना जाता है। मातारानी का मंदिर त्रिकुटा पहाड़ी पर लगभग 5200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
माता वैष्णोदेवी कैसे प्रकट हुई पौराणिक कथा
700 वर्ष से भी अधिक समय पहले कटरा के पास के हंसाली गांव में मातारानी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। उनके कोई संतान नहीं थी और वे बहुत गरीब थे, लेकिन वे चाहते थे कि एक दिन माता का भंडारा रखेंगे। जिसमे वे आसपास के गांव के लोगो को भोजन का न्योता देंगे। कुछ समय बाद माता के परम भक्त ने आसपास के गांव वालो को माता वैष्णवी का प्रसाद ग्रहण करने के लिए न्योता दिया।
भंडारे वाले दिन श्रीधर खाने बनाने की सामग्री के लिए घर घर गए लेकिन उनके पास उतनी सामग्री इकठ्ठा नही हो पाई जिससे वो भंडारे में आए सभी लोगो के लिए भोजन प्रसादी बना सकें। श्रीधर सोच रहे थे कि इतने कम सामान में भंडारा केसे होगा। पर्याप्त सामान न होने के कारण भंडारे के एक दिन पहले रात को श्रीधर सो नहीं पाए। वे यह सोचकर परेशान थे कि मेहमानों को भोजन प्रसादी कैसे करवाई जायेगी।
वह भंडारे की सुबह तक समस्याओं से घिरे हुए थे और अब बस उनको आस थी तो मातारानी से। सुबह होते ही वे नित्य कर्म के अनुसार अपनी झोपड़ी के बाहर माता वैष्णवी की पूजा में बैठ गए। दोपहर तक मेहमान आने शुरू हो गए थे, लेकिन श्रीधर को पूजा करते देख वो सभी छोटी सी झोपड़ी में आसानी से बैठ गए।
श्रीधर जब मातारानी वैष्णोदेवी की पूजा पाठ से उठे तथा अपनी आंख खोली और सोचा की अब इनको भोजन कैसे करवाएंगे। तब उसने एक छोटी सी लड़की को झोपड़ी से बाहर आते देखा जिसका नाम वैष्णवी था। वह मातारानी का ही बाल रूप था जो अपने परम भक्त की भक्ति से खुश होकर उसकी मनोकामना पूर्ण करने आई थी। वह लड़की सभी को स्वादिष्ट भोजन परोस रही थी। भंडारे में भैरव नाथ भी आकर बैठ गए थे जो कन्या की अलौकिक शक्ति जानकर उन्हें अपने वश में करना चाहते थे। माता जब उसको भोजन परोसने लगी तब उसने कहा कि मैं ये नही खाता मैं तो मास खाता हूं। मुझे मास चाहिए। भंडारे में माता की रक्षा के लिए ब्राह्मण रूप में हनुमान जी मौजूद थे। माता वैष्णवी भैरवनाथ के मन की इच्छा जान गई और वहा से गायब होकर त्रिकुटा पहाड़ी की एक गुफा में जाकर तपस्या में बैठ गई। भैरवनाथ भी उनके पीछे भागे।
जब भैरवनाथ गुफा के अंदर जाने लगा तब हनुमान जी ने उनको रोका था युद्ध के लिए ललकार दिया। गुफा के बाहर हनुमान जी तथा भैरवनाथ के बीच में 9 महीने तक निरंतर युद्ध चलता रहा जिसका कोई नतीजा नहीं निकला, जब माता वैष्णवी अपनी तपस्या पूरी करके गुफा से बाहर आई तब उन्होंने काली रूप धारण करके भैरवनाथ का सिर काट दिया।
उसी पहाड़ी पर श्रीधर अपने परिवार के साथ पहुंचकर माता की तपस्या करने लगे। माता ने प्रकट होकर नि:संतान श्रीधर को चार संतान होने का आशीर्वाद दिया और गुफा के बारे में बताया। श्रीधर एक बार फिर खुश हो गए और मां की गुफा की तलाश में निकल पड़े और कुछ दिनों बाद उन्हें वह गुफा मिल गई। तभी से वहां पर माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु जाने लगे।
मातारानी के मंदिर का महत्व:
यह मंदिर माता वैष्णोदेवी का जागृत मंदिर है। माना जाता है कि जो भी भक्त माता के दर्शन के लिए यहां आता है खाली हाथ कभी वापस नहीं जाता है। यहाँ सभी भक्तो की मनोकामनाये पूर्ण होती है। यह मंदिर भारत में तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखे जाना वाला धार्मिक स्थल है। इस माना जाता है की जब तक माताजी का हुकुम नही होता कोई भक्त अपने दर्शन को नहीं आता है। माताजी के बुलावे पर ही भक्त वैष्णोदेवी मंदिर जाते है। माता के बुलावे को उनका आशीर्वाद माना जाता है। माता वैष्णोदेवी का मंदिर भूवैज्ञानिक के अनुसार तेत्रयुग से पहले का बना हुआ है। मंदिर में हर साल लाखों भक्त दर्शन के लिए आते है।