उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास और रहस्य?
महाकाल मंदिर का इतिहास
हमारे हिन्दू धर्म मे भगवान शिव के अनगिनत मंदिर है। हर मंदिर मे भगवान शिव को अलग अलग नाम से जाना जाता है। भगवान शिव के हर मंदिर के पीछे अनेकों चमत्कार तथा रोचक घटनाए जुड़ी हुई रहती है।
आज हम आपको ऐसे ही उज्जैन में स्थित भगवान शिव मंदिर के बारे मे बताएँगे। महाकाल मंदिर में भगवान शिव महाकाल के रूप में विराजमान है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से उज्जैन महाकाल ज्योतिर्लिंग का तीसरा स्थान है। यह ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से इकलौता ज्योतिर्लिंग है जिसका मुख दक्षिण दिशा की तरफ है।
उज्जैन मे हर 12 साल मे कुम्भ मेले का आयोजन होता है। महाकाल मंदिर से अनेकों रहस्य तथा रोचक बातें जुड़ी हुई है। भगवान शिव को महादेव, भोलेनाथ, शंभू,शिवशंकर, त्रिलोकपति तथा अन्य नामों से पुकारा जाता है लेकिन उज्जैन में भगवान शिव को महाकाल के नाम से पुकारा जाता है।
आइए जानते है कि भगवान शिव को यहां महाकाल के नाम से क्यू पुकारा जाता है तथा महाकाल मंदिर कहाँ स्थित है?
महाकाल मंदिर कहाँ स्थित है:–
मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर की शिप्रा नदी के तट पर एक स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है। यह स्वंयभू ज्योतिर्लिंग महाकाल के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर इंदौर से 50km और भोपाल से 300km की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर भगवान शिव की आरती भस्म से की जाती है, जो समूचे विश्व मे विख्यात है, जिसको देखने के लिए लाखो भक्त वहाँ जाते है।
भगवान शिव को महाकाल नाम से जानने की पौराणिक कथा :-
पौराणिक कथा में बताया गया है कि उज्जैन नगरी जिसे उज्जैनी तथा अवंतिकापुरी के नाम से जाना जाता था। यहां दूषण नामक राक्षस का आतंक था। वहाँ के लोग राक्षस से डरते थे इसीलिए उसका नाम काल रखा गया है। यहां एक शिव भक्त ब्राह्मण रहता था।
नगरी में दूषण राक्षस का भय था वो लोगो को मारता था तथा सभी लोगो को परेशान करता था इसीलिए ब्राह्मण ने भगवान शिव से राक्षस काल का संहार करने की प्रार्थना भगवान शिव से की लेकिन भगवान शिव ने उसकी प्रार्धना नही सुनी जिससे उसने दुखी होकर भगवान शिव की पूजा करना बंद कर दिया।
अपने भक्त को दुखी देखकर भगवान शिव ने ब्राह्मण की प्रार्थना स्वीकार की और शिव हुंकार के रूप में प्रकट हुए और राक्षस दूषण का वध कर दिया। चूंकि दूषण राक्षस को काल के नाम से जाना जाता था इसीलिए उनका वध करने वाले शिव को महाकाल कहा गया। तब से उज्जैन में भगवान शिव को महाकाल नाम से पुकारा जाता है।
अकाल मृत्यु से बचने के लिए महाकाल की पूजा:-
दूषण नाम के राक्षस का वध करने के कारण महाकाल की पूजा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि जो भी भक्त मंदिर में आकर महाकाल की मन से आराधना करता है उसको मृत्यु का भय नहीं होता है और न ही उसकी अकाल मृत्यु होती है। मंदिर में अकाल मृत्यु के निवारण के लिए बाबा महाकाल की विशेष पूजा की जाती है। कथा में यह भी बताया गया है कि शिव के महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॥
महाकाल मंदिर की बनावट:-
महाकाल मंदिर तीन भागों में बना हुआ है। सबसे ऊपर वाले भाग में नागचंद्रेश्वर मंदिर है जो साल में नागपंचमी के दिन एक बार खुलता है।मध्य के भाग में ओंकारेश्वर का शिवलिंग है तथा सबसे नीचे के भाग में दिव्य ज्योतिर्लिंग महाकाल है। कर्क रेखा ठीक शिवलिंग के ऊपर से गुजरती है इसीलिए महाकाल मंदिर को पृथ्वी का मध्य बिंदु या नाभी कहा जाता है।
महाकाल मंदिर की भस्म आरती
शिवपुराण की कथाओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नी सती ने अपने पिता राजा दक्ष द्वारा अपने पति शिव का अपमान करने से गुस्सा होकर जलती दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह किया था इससे भगवान शिव दुखी व क्रोधित हो गए है। वो सती माता को लेकर इधर उधर घूमने लगे। उनके दुख को देखकर भगवान श्री हरी ने सती माता के शरीर के टुकड़े कर दिए। भगवान शिव सती को अपने से दूर करना नही चाहते थे इसीलिए उनकी भस्म को अपने शरीर पर लगा दी। इस कारण भगवान शिव की भस्म आरती होती है।
पौराणिक कथा में कहा गया है कि भगवान महाकाल को जगाने के लिए भस्म की आरती की जाती है। भगवान शिव को जगाने के लिए भस्म आरती सुबह 4 बजे की जाती है। पुराने समय में भस्म की आरती में काम आने वाली भस्म शमशान भूमि से लाई जाती थी लेकिन वर्तमान में भस्म आरती में कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर तैयार किए गए भस्म का इस्तेमाल किया जाता है।
माना जाता है कि महिलाओं का भस्म आरती देखना निषेध है इसीलिए आरती के समय महिलाएं घूंघट निकाल लेती है। भस्म आरती करते समय पुजारी गर्भ गृह में एक वस्त्र धोती में होता है।
महाकाल में राजा,मुख्यमंत्री , प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति क्यों नहीं रुक सकते:-
ऐसा माना जाता है कि महाकाल से बड़ा कोई राजा नही है।उज्जैन में महाकाल राजा के रूप में साक्षात विराजमान है इसलिए यहां कोई और राजा रूपी तत्व हो ही नही सकता है। जिस समय से उज्जैन में महाकाल विराजमान हुए है तब से उज्जैन का कोई राजा नही हुआ है
यहां के राजा साक्षात प्रभु महाकाल ही है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कोई भी राजा या देश का सर्वोपरि नेता महाकाल में रात्रि निवास नही करता है। यदि कोई राजा यहां रात्रि विश्राम करता है तो उसे इसकी सजा भुगतनी पड़ती है या तो उसकी मृत्यु हो जाती है या उसकी सत्ता समाप्त हो जाती है। इस धारणा को सही ठहराते हुए कई ज्वलंत उदाहरण उज्जैन के इतिहास में दर्ज हैं।
देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन के बाद उज्जैन में मात्र एक रात रुके थे। अगले दिन मोरारजी देसाई की सरकार ध्वस्त हो गई। उज्जैन में एक रात रुकने के बाद कर्नाटक के सीएम वाईएस येदियुरप्पा को 20 दिनों के भीतर इस्तीफा देना पड़ा। राजा विक्रमादित्य के बाद से उज्जैन के किसी भी मानव राजा ने कभी भी उज्जैन शहर में रात नहीं बिताई है और जिन्होंने ऐसा किया, उनमें से कई राजा आपबीती कहने के लिए जीवित नहीं रहे।
महाकाल मंदिर के आसपास के धार्मिक पर्यटक स्थल:-
1.महाकाल मंदिर
उज्जैन मे महाकालेश्वर महादेव का पवित्र मंदिर है। उज्जैन मे महाकाल मंदिर सबसे प्रमुख है, इसके नाम से उज्जैन शहर जाना जाता है। महाकालेश्वर मंदिर की भस्म आरती के लिए लाखो भक्त उज्जैन आते है। भस्म आरती का समय सुबह 4 बजे का होता है। महाकालेश्वर मंदिर 3 भागो मे बना हुआ है।
2.राम मंदिर घाट
उज्जैन शहर मे स्थित राम मंदिर घाट हिन्दू धर्म के लोगों के लिए धार्मिक पर्यटक स्थल है। राम मंदिर घाट पर स्नान करने से भक्तो को पुण्य की प्राप्ति होती है। कुम्भ के मेले के समय आने वाले सभी भक्त इसी घाट पर कुम्भ स्नान करते है। ऐसा माना जाता है कि राम मंदिर घाट पर स्नान करने से भक्तो के सारे पाप धूल जाते है।
कुम्भ मेला
उज्जैन शहर मे हर 12 साल मे एक बार कुम्भ मेले का आयोजन होता है। अपने हिन्दू धर्म मे कुम्भ मेले को बहुत ही धार्मिक तथा महत्वपूर्ण तीर्थ माना गया है। उज्जैन मे कुम्भ मेले के समय लाखो कि संख्या मे भक्त पवित्र नदी मे स्नान करने आते है। कुम्भ का मेला 12 दिनों तक चलता है। उज्जैन के कुम्भ मेले का मुख्य स्थान शिप्रा नदी तथा सरस्वती नदी के महासंगम को माना जाता है।
उज्जैन मे अगला कुम्भ मेला सन 2028 मे आयोजित होगा। कुम्भ मेले का दर्शन मनमोहक होता है।
4. कलियादेह पैलेस
यह पैलेस धार्मिक रूप से काफी महत्व रखता है। इस पैलेस के दोनों तरफ जल का भराव रहता है। इस पैलेस की खंडित इमारत को माधवराज सिंधिया ने बहुत ही सुंदर रूप देकर पुन निर्माण करवाया। यह पैलेस उज्जैन की धार्मिक संस्कृति को बताता है। इस पैलेस के खुलने का समय सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक का होता है। इस दौरान पर्यटक पैलेस मे घूम कर वहाँ की मनोरम सुंदरता को देख सकते है।
5. काल भैरव मंदिर
उज्जैन के काल भैरव का मंदिर काफी लोकप्रिय है। यह मंदिर हिन्दुओ की प्राचीन संस्कृति को दिखाता है। यहाँ के काल भैरव को भगवान शिव का उग्र रूप माना जाता है। महाकाल के दर्शन के लिए आने वाले लाखो भक्त काल भैरव के दर्शन किए बगैर नहीं जाते है।
यहाँ पर भी हर वर्ष लाखो भक्त दर्शन के लिए आते है। भैरव मंदिर मे भक्त शराब भी चढ़ाते है। महाशिवरात्री के दिन यहाँ मेले का आयोजन होता है।
6. डबल्यू डबल्यू एफ़ वॉटर पार्क
शहर मे पर्यटको के घूमने तथा दर्शन के लिए बहुत सारे धार्मिक स्थल है। लेकिन इसके साथ साथ घूमने के लिए उज्जैन मे डबल्यू डबल्यू एफ़ वॉटर पार्क स्थित है। यह पार्क बच्चो के लिए काफी मनोरम है। इस वॉटर पार्क मे कुछ पल मनोरंजन के व्यतीत कर सकते है। उज्जैन शहर का यह पार्क काफी रोचक तथा सुंदर है।
7. भर्तहरी गुफा
भर्तहरी गुफा को उज्जैन के मुख्य पर्यटक स्थलो मे माना जाता है। यह पर्यटक स्थल शिप्रा नदी के किनारे पर स्थित है। कथाओ मे बताया गया है कि राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तहरी ने सांसारिक मोह माया को त्याग कर इस गुफा मे ध्यान साधना की थी। तब से इस गुफा को.भर्तहरी गुफा के नाम से जाना जाता है। इस गुफा का माहोल बहुत ही शांत रहता है।