https://tirthdhamdarshan.com/shree-gopal-ashtakam-in-sanskrit/

श्री गोपाल अष्टकम | Gopal Ashtakam Sanskrit पुत्र प्राप्ति मंत्र

हमारे हिंदू धर्म के वैदिक शास्त्रों के अनुसार, संतान प्राप्ति के लिए संतान गोपाल मंत्र का सवा लाख बार जप करना होता है, लेकिन इसे एक साथ या एक दिन में सवा लाख बार जप करने की आवश्यकता नहीं है। आप इसे नियमित रूप और नियमित संख्या के अनुसार मंत्र का जप कर सकते हैं।

संतान गोपाल मंत्र-
ॐ क्लीं देवकी सुत गोविंदो वासुदेव जगत्पते देहि मे।
तनयं कृष्ण त्वामहं शरणंगता: क्लीं ॐ।

श्री गोपाल अष्टकम – संतान गोपाल की पाठ विधि

संतान गोपाल का पाठ करने से पहले सुबह स्नान करें, साफ कपड़े पहनें। फिर भगवान लड्डू गोपाल की मूर्ति के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं, उनके सामने बैठकर गोपाल अष्टकम का पाठ करें और संतान गोपाल मंत्र का जप करें, लेकिन याद रहें कि सवा लाख जप मंत्र शुभ मुहूर्त में भगवान को माखन मिश्री का भोग लगाकर शुरुआत करें। और भगवान के बाल स्वरूप का स्मरण करें।

 

श्रीगोपालाष्टक मंत्र (Gopal Ashtakam)

भज श्रीगोपालं दीनदयालं, वचनरसालं तापहरम् ।
विहरत स्वच्छन्दं आनन्दकन्दं, श्रीव्रजचन्दं ब्रह्मपरम ।।

पूरणशशिवदनं, शोभासदनं, जित-छबिमदनं रूपवरम् ।
हलधरवरवीरं श्यामशरीरं, गुणगम्भीरं धीरधरम् ।।

राजत बनमाला, रूपविशाला, चाल मराला सुरतहरम् ।
कुण्डलधृतकरणं, गिरिवरधरणं, निज-जन शरणं कृपाकरम् ।।

गोपिन कृतअंगं, ललित-त्रिभंगं, लज्जित अनंगं निरखि परम्।
जलधरवरश्यामं, पूरणकामं, अति सुखधामं दुःखहरम् ।।

वृन्दावन-क्रीड़ित असुरन-पीड़ित, ब्रजतिय-व्रीड़ित रसिकवरम् ।
नूपुरध्वनिचरणं मुनिमनहरणं, तारणं-तरणं तुष्टतरम्।।

राधा-उपहार, रूप-अपारं, नीरविहारं चीरहरम् ।
कुञ्चित वरकेशं मुकुटविशेष, गोपसुवेषं, निगमवरम् ।।

कोमल अतिचरणं, वेदविवरणं, जगदुद्धरणं मृदुलतरम् ।
अकलन-मुखराजत मन्मथलाजत, किंकणीबाजत मधुरस्वरम् ।।

वंशीकृतनादं, हरतविषादं, युगवरपादं तिमिरहरम् ।
भक्तन-आधीनं चरित-नवीनं, परम प्रवीनं प्रेम-परम् ।।

अतिनृत्यप्रवीरे धीरसमीरे, यमुनातीरे रासकरम् ।
कलगान अनूपं श्यामस्वरूपं, त्रिभुवनभूपं मोदभरम् ।।

राधागुणगायक ब्रजसुखदायक, सुरवरनायक बेणुधरम्।
सुन्दर मृदुहासं विपिन-विलासं कुञ्जनिवासं केलिकरम् ।।

युवतीदृग-अञ्जन जनमनरञ्जन, केशीभञ्जन भारहरम् ।
भूषण निज-भवनं गजगति गमनं, कालियदमनं नृत्यकरम्।।

गोरजमुखशोभित सुरनरलोभित, मन्मथक्षोभित दृश्यपरम्।
गोपनसहभुञ्ज विपिननिकुञ्ज, वत्सनपुञ्ज दुहिणहरम् ।।

यह छवि-तारायण लखि ‘नारायण’ भये परायण अखिल नरम्।
भज श्रीगोपालं दीनदयालं, वचनरसालं तापहरम् ।।

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *