भीनमाल वराहश्याम मंदिर का इतिहास- Varahshyam Mandir Bhinmal

भगवान वराहश्याम का मंदिर राजस्थान के जालौर जिले के भीनमाल शहर में स्थित है। भगवान वराहश्याम का मंदिर शहर के मध्य मुख्य बाजार में स्थित है। 36 कौम के नगरवासी भगवान वरहश्याम के दर्शन करके शुभ काम की शुरुआत करते है।

वराहश्याम मंदिर का इतिहास भीनमाल (Shree Varahshyam Mandir Bhinmal)

भीनमाल शहर में स्थित भगवान वराहश्याम का प्रसिद्ध मंदिर लगभग 600 वर्ष पुराना है और यह मंदिर हिंदू धर्म के प्रमुख मंदिरों में गिना जाता है। भगवान वराहश्याम का मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। भगवान वराहश्याम को भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक माना जाता है। 

पुराणों में लिखा है कि पाताल में दबी हुई पृथ्वी का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने वाराहश्याम (शुकर) के रूप में अवतार लिया था। यह मंदिर शहर का सबसे पुराना मंदिर है और शहर के केंद्र में स्थित है। भगवान वराहश्याम को नगरवासी नगरधणी नाम से पुकारते हैं।

मंदिर में भगवान वराहश्याम की विशाल मूर्ति जैसलमेर के पीले पत्थरों से बनी है। मूर्ति की ऊंचाई 8 फीट और चौड़ाई 3 फीट है।वराहजी की मूर्ति के चार हाथ हैं। प्रतिमा के बायीं ओर स्थित दोनों हाथों में से एक हाथ में शंख तथा दूसरे हाथ में गदा है। प्रतिमा के दाहिने हाथ में एक में चक्र तथा दूसरे हाथ में कमल के पुष्प पर बैठी हुई लक्ष्मीजी की खड़ी प्रतिमा है। मूर्ति का एक पैर पाताल लोक में है और दूसरे पैर के नीचे मेदिनी (पृथ्वी) है।

ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थापित वराहजी की मूर्ति के समान विश्व में कहीं भी कोई मूर्ति नहीं है।

मूर्ति के चरणों में नाग-नागिन का जोड़ा स्थापित है, जिसका ऊपरी भाग मनुष्य की आकृति में बना है। पास ही इन्द्राणी और नारद जी की मूर्तियाँ भी उत्कीर्ण हैं। भगवान की मूर्ति अत्यंत भव्य एवं कलात्मक है, जिसे देखने पर पृथ्वी के उद्धार की घटना स्पष्ट रूप से घटित होती दिखाई देती है। कहा जाता है कि भगवान वराहश्याम के पैर पाताल में और सिर इंद्रलोक में है, उनके हाथों में पृथ्वी है।

भगवान वराहश्याम, विष्णु के अवतार से जुडी कथा:

वराह अवतार भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक है। भगवान वराहश्याम को भगवान विष्णु का तीसरा अवतार माना जाता है। पुराणों में लिखा है कि पाताल में दबी हुई पृथ्वी का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने वराहश्याम (शुकर) के रूप में अवतार लिया था।

भगवान विष्णु ने वराहश्याम के रूप में अवतार लिया और पाताल लोक में राक्षस हिरण्यकश्यप का वध किया और पृथ्वी को अपने दांतों में दबाकर पाताल लोक से बहार लेकर आये। इस घटना का वर्णन ऋषि ग्रंथों और पुराणों में किया गया है।

खिड़की से वराहश्याम के दर्शन

मंदिर में एक खिड़की है जो बाजार के मार्ग पर है। इस खिड़की से सभी भक्त आसानी से आठ फीट ऊंची और तीन फीट चौड़ी बड़ी मूर्ति के दर्शन कर सकते हैं। शहरवासी मार्ग से चलते हुए बाहर से ही मंदिर के दर्शन करते हैं।

वराहश्याम मंदिर में मेलों का आयोजन

भगवान वराहश्याम के मंदिर में हर वर्ष मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार भगवान वराहश्याम की जयंती पर निकली जानी वाली रथ यात्रा (रेवाड़ी) है। इसके अलावा देवझूलनी एकादशी, गणेश चतुर्थी, कृष्ण जन्माष्टमी और अन्य विशेष दिनों पर मंदिर में धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

वराहश्याम मंदिर रथ यात्रा (रेवाड़ी)

भगवान वराहश्याम की रथ यात्रा हर वर्ष भगवान के जन्म के बाद भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में निकाली जाती है। रथ यात्रा में भगवान की मूर्ति को पालकी में रखकर ढोल-नगाड़ों के साथ शहर में घुमाया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में रेवाड़ी कहा जाता है।

भगवान वराहश्याम जी का अन्नकूट भोग 

भगवान को अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। अन्नकूट भोग में 32 तरह के व्यंजन और 33 तरह की सब्जियां बनाई जाती हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को मंदिर में भगवान वराहश्याम को अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।

शाकद्वीपीय ब्राह्मण वराहश्याम मंदिर की पूजा करते हैं:

शाकद्वीपीय ब्राह्मण समुदाय के पुजारियों द्वारा पवित्र मंदिर में भगवान वराहश्याम की पूजा की जाती है। पूजा की बारी समाज के अलग-अलग परिवारों से आती है। जिस परिवार की बारी होती है केवल वही परिवार मंदिर में पूजा कर सकता है।

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