द्वारकाधीश मंदिर का इतिहास? और रहस्य | Dwarkadhish Mandir History

जय श्री द्वारकाधीश की दोस्तो। आज हम आपको हमारे हिन्दू धर्म के चार धामों मे से एक धाम द्वारकाधीश मंदिर से जुड़े रहस्यो, मंदिर कहाँ स्थित है, भगवान श्री कृष्ण मथुरा छोड़कर द्वारका मे क्यों बसे, मंदिर की बनावट, मंदिर की विशेषताए तथा यहाँ के अन्य मंदिर के बारे मे बताएँगे।

द्वारकाधीश मंदिर का इतिहास? (Dwarkadhish Mandir History)

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Source: Anup Gandhe

द्वारकाधीश मंदिर भगवान भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। द्वारका मंदिर मे लाखो भक्त दुनिया के कोने कोने से भगवान के दर्शन करने आते है। इस मंदिर मे किसी भी मौसम आप दर्शन करने के लिए जा सकते हो। यह मंदिर भले ही समुन्द्र मे डूब गया हो लेकिन भक्तों का प्रेम तथा आस्था इस मंदिर से हमेशा जुड़ी हुई रहेगी।

द्वारका नगरी छ बार समुन्द्र मे डूब चुकी है अभी जो वर्तमान मे नगरी है वो सातवी बार बसाई गयी है। वर्तमान मे स्थित द्वारिका नगरी आदि शंकरचार्य ने स्थापित की थी। द्वारकाधीश मंदिर को जगत मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के शिखर की ऊंचाई लगभग 78 मीटर है। मंदिर के शिखर पर 52गज ऊंचाई का एक ध्वज लगा हुआ है जिसपर चंद्रमा और सूर्य की आकृति बनी हुई है।

ध्वज पर सूर्य और चंद्रमा इस बात का प्रतीक है कि जब तक सूर्य और चंद्रमा है तब तक द्वारकाधीश का मंदिर विद्यमान रहेगा। ध्वज को दिन मे 5 बार बदला जाता है। हर बार अलग रंग का ध्वज लगाया जाता है लेकिन इसके ऊपर सूर्य और चंद्रमा की आकृति हमेशा रहती है। इस ध्वज को कई मीलो दूर से देखा जा सकता है। 

द्वारकाधीश मंदिर कहाँ स्थित है?

द्वारकाधीश मंदिर हिन्दुओ के चार धामो मे से एक धाम है। यह मंदिर भगवान मे आस्था रखने वाले हिन्दुओ के लिए विशेष मान्यता रखता है। 

यह मंदिर गुजरात राज्य के जामनगर जिल्ले के द्वारका शहर मे अरब सागर के किनारे गोमती नदी के तट पर  स्थित है। द्वारका मंदिर पर आप सड़क मार्ग तथा रेलमार्ग से जा सकते हो। द्वारका मंदिर के निकट जामनगर मे हवाई अड्डा भी बना हुआ है।

भगवान श्री कृष्ण अपनी जन्मभूमि मथुरा छोड़कर द्वारकपुरी क्यों आए?  

हिन्दू पुरानो तथा कृष्णलीला मे बताया गया है कि श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस के क्रूर शासन का अंत करने के लिए उनका वध कर दिया था। कंस बड़ा ही क्रूर और निर्दय शासक था जो जनता पर बहुत अत्याचार करता था। मथुरा के राजा उग्रसेन को कंस कि मृत्यु के बाद मथुरा का शासन देने कि घोषणा की गयी।

राजा उग्रसेन कंस के पिताजी थे। लेकिन मगध के राजा जरासंध को उग्रसेन मथुरा पर शासन करे यह स्वीकार नहीं था। इसी कारण से राजा जरासंध ने शपथ ली कि वह सभी यादव कुल का विनाश कर देंगे। जरासंध कंस के ससुर थे। उन्होने यादव कुल का नाश करने के लिए  मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया।

जब मथुरा कि प्रजा जरासंध के हमलो से दुखी और परेशान होने लगी तब श्री कृष्ण सभी मथुरावासियों तथा अपने यादव कूल के लोगों  को सुरक्षित रखने के लिए उनको लेकर द्वारका आ गए। तब से भगवान श्री कृष्ण को रणछोड़ राय कहा जाने लगा।

द्वारका आने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने देवताओ के वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा को आग्रह किया कि गोमती नदी के तट पर समुन्द्र के एक भाग को लेकर उसपर एक भव्य नगरी का निर्माण करे। भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा लेकर भगवान श्री विश्वकर्मा जी ने भव्य द्वारका नगरी का निर्माण मात्र एक ही रात मे कर दिया।

जब द्वारका नगरी का निर्माण हुआ तब यह नगरी स्वर्ण नगरी के नाम से जानी जाती थीं क्यूकी द्वारका नगरी मे स्वर्ण का द्वार लगा हुआ था। आइए जानते है कि द्वारका नगरी का नाम द्वारका क्यो पड़ा?

द्वारिका नगरी का नाम द्वारका क्यों पड़ा?

प्राचीन काल मे माना जाता है कि द्वारका नगरी का नाम कुश स्थली था। कुश स्थली नाम यहा पर रहने वाले कुश राक्षस की वजह से था। राक्षस कुश का वध भगवान विक्रम ने इसी जगह किया था। 

इस नगर मे बहुत सारे द्वार होने के कारण इस नगरी का नाम द्वारका नगरी रखा गया। इस नगरी मे प्रवेश का द्वार स्वर्ण का बना हुआ था इसीलिए इस नगरी को स्वर्ण द्वारका नगरी कहा जाता था।

द्वारका नगरी समुन्द्र मे क्यों डूब गयी?

माना जाता है भगवान श्री कृष्ण ने अपने 18 साथियो के साथ 36 वर्षो तक द्वारका पर राज किया। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण का जीवनकाल सम्पूर्ण हो गया।

धर्म पुरानो मे बताया गया है कि जब श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध मे पांडवो का साथ दिया तब महाभारत युद्ध के बाद कौरवो कि माता गांधारी ने श्राप दिया कि जिस तरह श्री कृष्ण कि वजह से कौरव कुल का नाश हुआ है उसी तरह श्री कृष्ण के यादव कुल का सम्पूर्ण नाश होगा। यही कारण था कि उनके सभी यदुवंशीकुल की समाप्ति के पश्चात द्वारिका नगरी समुद्र में डूब गई।

द्वारकाधीश मंदिर से जुड़ी हुई पौराणिक कथा 

माना जाता है कि महर्षि दुर्वासा भगवान श्री कृष्ण तथा रुक्मणी के दर्शन के लिए द्वारका नगरी आए। तथा उनका दर्शन करने के पश्चात उनके निवास स्थान पर चलने का अनुरोध किया। महर्षि दुर्वासा का अनुरोध स्वीकार करके भगवान श्री कृष्ण तथा रुक्मणी ऋषि दुर्वासा के निवास की तरफ जाने लगे।

लेकिन बीच मे रुक्मणी को थकान हो गयी और वो वही खड़ी रही भगवान श्री कृष्ण ने रुक्मणी की प्यास बुझाने के लिए   एक पौराणिक छिद्र से गंगा की पावन धारा को वहां पर ला दिया। 

इस घटना से महर्षि दुर्वासा को लगा कि देवी रुक्मणी भगवान श्री कृष्ण को उनके साथ जाने से रोक रही है। इस कारण दुर्वासा ऋषि को रुक्मणी पर गुस्सा आया और उन्होने श्राप दिया कि वह उसी स्थान पर रहे। इसी श्राप कि वजह से इसी जगह पर द्वारका मंदिर बना हुआ है तथा रुकमनी मंदिर द्वारका मंदिर से दूर बना हुआ है। 

द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण किसने करवाया तथा बनावट कैसी है? 

द्वारका नगरी का निर्माण तो भगवान श्री कृष्ण ने करवाया था लेकिन द्वारका मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पोते वज्रभ ने करवाया था। ऐसा माना जाता है कि द्वारका मंदिर लगभग 2000 साल पहले बनाया गया था।

द्वारका मंदिर का ढांछा पाँच मंजिल का बना हुआ है तथा पूरा मंदिर 72 स्तंभो पर स्थापित है। द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण चूना पत्थर से करवाया गया है। इस मंदिर मे प्रवेश करने के लिए दो प्रमुख द्वार बनाए गए है जिसमे से एक द्वार का नाम मोक्षद्वार तथा दूसरे द्वार का नाम स्वर्ण द्वार है।

मंदिर के दक्षिण मे जगत गुरु शंकराचार्य का शारदा मठ तथा पूर्व  दिशा मे दुर्वासा ऋषि का भव्य मंदिर बना हुआ है। मंदिर के उतरी प्रवेश द्वार के पास कुशेश्वर नाथ का शिव मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि कुशेश्वर शिव मंदिर के बिना द्वारका धाम का तीर्थ अधूरा होता है।  

द्वारकाधीश मंदिर खुलने का समय क्या है? (Dwarkadhish Mandir Timing)

द्वारकाधीश का मंदिर सुबह 6.00 बजे आरती के साथ खुलता है तथा मंगल करने का समय रात्री 9.30 बजे रहता है। इस बीच मंदिर का दोपहर के 1बजे से शाम के 5बजे तक बंद रहता है। 

द्वारका मंदिर में सुबह की आरती 6.30 बजे से 7.00 बजे तक होती है। इसके बाद भक्तो को भगवान के पहले दर्शन करने की अनुमति मिलती है। दोपहर 1.00 बजे से शाम 5.00 बजे तक आनेसर के लिए मंदिर के पट बंद रहते है। इस समय भगवान के कोई दर्शन नहीं कर सकता है।

द्वारकाधीश मंदिर के पास रहने की व्यवस्था

द्वारका मंदिर में श्री कृष्ण भगवान की मूर्ति को सुबह नित्यकर्म से पूजा पाठ करके प्रत्येक दिन भगवान को राजा जैसा उपचार दिया जाता है। द्वारकाधीश हिंदुओ के तीर्थस्थलों में अपनी महत्वपूर्ण जगह रखता है।

यहां हर दिन भक्तो की भीड़ लगी रहती है। भक्त अलग अलग जगहों से द्वारकाधीश के दर्शन करने आते है। लोगों के मन में द्वारकाधीश के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास है। इसीलिए जिंदगी में एक बार आपको भी द्वारकाधीश के दर्शन को जाना चाहिए।  द्वारका में भक्तो के लिए धर्मशाला की व्यवस्था है तथा सही दाम पर होटल भी स्थित है। खाने पीने की उत्तम व्यवस्था है। 

 आइए जानते है द्वारकाधीश मंदिर की अन्य जानकारियाँ

1. द्वारकाधीश मंदिर किस नदी के तट पर स्थित है?

यह मंदिर गोमती नदी के तट पर स्थित है।

2. द्वारकाधीश मंदिर की समुन्द्र तल से ऊंचाई कितनी है?

मंदिर समुन्द्र तल से 40फीट की ऊंचाई पर है। मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर है।

3. क्या मंदिर अभी भी समुन्द्र मे डूबा हुआ है?

यह मंदिर वर्तमान मे बाहर स्थित है लेकिन यह नगरी छ बार समुन्द्र मे डूब चुकी है।

 4. द्वारकाधीश मंदिर का ध्वज दिन मे कितनी बार बदलते है तथा इसकी लंबाई कितनी है?

मंदिर के शिखर पर ध्वज को दिन मे 5 बार अलग अलग रंग के साथ बदलते है तथा इसकी लंबाई 52 गज की होती है।

5. द्वारकाधीश मंदिर जाने का सही समय कौनसा है?

साल मे आप किसी भी मौसम मे आप द्वारकाधीश मंदिर दर्शन के लिए जा सकते है। लेकिन सर्दियों के समय मे यहाँ भक्तो की भीड़ ज्यादा रहती है। नवंबर से मार्च महीने के समय यहाँ भक्तों की भरी भीड़ रहती है।

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