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Badrinath मंदिर का इतिहास? रहस्य और अनोखी घटनाएं

बदरीनाथ मंदिर को बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है। जो अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है। यह हिन्दुओं के चार धाम मेें से एक धाम है। ऋषिकेश से यह 294 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है।

बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास ( Badrinath Temple History)

ये पंच बदरी में से एक बद्री भी है। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिंदू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। जब इस मंदिर के इतिहास की बात आती है तो किसी को कोई पता नहीं है कि मंदिर कितना पुराना है।

इतिहास की किताबे कहती है कि मंदिर वैदिक काल का बना हुआ है। इस मंदिर का वर्णन वैदिक कथाओं तथा पुराणों में मिलता है। मंदिर का निर्माण आदिगुरु शंकराचार्य ने किया था। शंकराचार्य ने इस मंदिर की पूजा पाठ के लिए केरल के एक नंबूदिरी ब्राह्मण रखा था जो परंपरा आज भी चली आ रही है।

बद्रीनाथ मंदिर कहाँ स्थित है?

https://tirthdhamdarshan.com/badrinath-temple-history-in-hindi/यह मंदिर भारत देश के उतराखंड राज्य के बद्रीनाथ शहर में अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित है। बद्रीनाथ मंदिर को बद्रीनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर जोशीमठ से 45 किलोमीटर दूर है। मंदिर के ठीक सामने भव्य नीलकंठ चोटी स्थित है।

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बद्रीनाथ मंदिर के अलावा यहां तप्त कुंड, ब्रह्मा कपाल, नीलकंठ शिखर, माता मूर्ति मंदिर, चरणपादुका, शेषनेत्र, वसुधरा वॉटरफॉल देख सकते हैं। ये सभी जगह एक दूसरे से कुछ किमी की दूरी पर ही स्थित हैं। बद्रीनाथ के दर्शन करने के बाद इन लोकप्रिय जगहों पर भी घूमने की प्लानिंग जरूर करें।

बद्रीनाथ मंदिर कैसे जाएं?

बद्रीनाथ मंदिर जाने के लिए सभी सुविधाएं है। इस मंदिर पर जाने के लिए दिल्ली से देहरादून के जॉली ग्रांट हवाई अड्डे तक हवाई जहाज से जा सकते है। यहाँ से यह मंदिर लगभग 314 किलोमीटर दूर है। अगर आप रेल मार्ग से जाना चाहते हो तो आप ऋषिकेश तक रेल द्वारा जा सकते हो वहा से आपको टैक्सी की सुविधाएं मिल जाती है। सड़क मार्ग से भी आप बद्रीनाथ धाम जा सकते है।

बद्रीनाथ जाने का सबसे अच्छा समय (badrinath time to visit)

बद्रीनाथ का मौसम लगभग पूरे साल ठंडा रहता है। इस जगह पर जाने का सही समय मई से जून और सितंबर से अक्टूबर के बीच होता है। मानसून के मौसम की शुरुआत के साथ, बद्रीनाथ में भारी वर्षा और तापमान में गिरावट देखी जाती है। भारी बर्फबारी के कारण यहां सर्दियों में ठंड बेहद बढ़ जाती है।

अधिकतर सर्दियों में तो तापमान माइनस डिग्री तक पहुंच जाता है। इसलिए गर्मी का मौसम इस जगह की यात्रा के लिए परफेक्ट समय है। जिस मौसम में आप यहां यात्रा करने जा रहे हैं, बस इस बात का ध्यान रखें कि आप उस हिसाब के कपड़े जरूर लेकर जाएं।

कपड़ो के साथ साथ खाने का भी विशेष ध्यान रखे क्योंकि बद्रीनाथ मंदिर 3300 मीटर की ऊंचाई पर होने के कारण वहा पर बहुत से रेस्तरां नही है और केवल कुछ ही लोकल फूड स्टॉल है।

बद्रीनाथ मंदिर के रहस्य?

https://tirthdhamdarshan.com/badrinath-temple-history-in-hindi/बद्रीनाथ नाथ मंदिर को भगवान विष्णु का दूसरा वैकुंठ माना जाता है। अलकनंदा नदी भगवान बद्रीनाथ के पाव पखारती है। बद्रीनाथ के बारे में यह भी माना जाता है कि यह स्थान भगवान शिव का था लेकिन भगवान विष्णु ने शिव से यह स्थान मांग लिया था। 

बद्रीनाथ मंदिर से जुड़ी कथा:

https://tirthdhamdarshan.com/badrinath-temple-history-in-hindi/बद्रीनाथ धाम के बारे में एक और कथा कहती है कि नर और नारायण; धरम के दो पुत्र थे, जो अपने आश्रम की स्थापना की कामना करते थे। और विशाल हिमालय पर्वतों के बीच कुछ सौहार्दपूर्ण स्थान पर अपने धार्मिक आधार का विस्तार करना चाहते थे। नर और नारायण वास्तव में दो आधुनिक हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के लिए पौराणिक नाम हैं।

कहा जाता है कि, जब वे अपने आश्रम के लिए एक उपयुक्त जगह की तलाश का कर रहे थे तो, उन्होंने पंच बद्री की अन्य चार स्थलों पर ध्यान दिया अर्थात् ब्रिधा बद्री, ध्यान बद्री,  योग बद्री और भविष्य बद्री। अंत में अलकनंदा नदी के पीछे गर्म और ठंडा वसंत मिला और इसे बद्री विशाल का नाम दिया गया| इसी तरह बद्रीनाथ धाम अस्तित्व में आया।

पुजारी को क्यों करना पड़ता है ब्रह्मचार्य का पालन

बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं, जो रावल कहलाते हैं। यह जब तक रावल के पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। रावल के लिए स्त्रियों का स्पर्श भी पाप माना जाता है।

यह है बद्रीनाथ का भव्य नजारा। मान्यता है कि बद्रीनाथ में भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। इस घटना की याद दिलाता है वह स्थान जिसे आज ब्रह्म कपाल के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मकपाल एक ऊंची शिला है जहां पितरों का तर्पण श्राद्घ किया जाता है। माना जाता है कि यहां श्राद्घ करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।

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