रावण रचित “शिव ताण्डव स्तोत्र” का पाठ करने की विधि
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करते समय आपको कुछ बातों का ध्यान रखना अत्यंत जरूरी है क्योंकि यह स्तोत्र एक जागृत एवं सिद्ध स्तोत्र है। इसीलिए इसका पाठ करते समय आपको सावधानियां रखनी बहुत जरूरी है, नही तो आपको इसका पाठ करने से कोई लाभ नहीं मिलेगा और आपकी साधना सिद्ध नही होगी।
रावण द्वारा रचित “शिव ताण्डव स्तोत्र” का पाठ करने की विधि:
1. शुद्धि की प्राप्ति:
इस स्तोत्र का पाठ करने से पहले स्नान करके शरीर को शुद्ध कर लेना चाहिए। पाठ करने से पहले साफ कपड़े पहनने चाहिए और पूजा स्थल को साफ करना चाहिए।
2. सही उच्चारण:
इस स्तोत्र का पाठ करते समय मंत्रों का उच्चारण सही ढंग से करना चाहिए। स्तोत्र पढ़ते समय पढ़ने में कोई गलती नहीं करनी चाहिए। स्तोत्र को बीच में नहीं रोकना चाहिए।
3. पूजा का स्थान:
जिस स्थान पर आप स्तोत्र का पाठ करने बैठें उसके आसपास का क्षेत्र शांत होना चाहिए। पाठ करते समय आसपास कोई शोर नहीं होना चाहिए।
4. सामग्री- पुस्तक एवं माला:
इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए बैठने से पहले स्तोत्र पढ़ने के लिए किताब और जप के लिए माला लेकर बैठें।
5. मुख की दिशा:
इस पाठ को पढ़ते समय आपको पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। पूर्व दिशा की ओर मुख करके पाठ करने से पाठ का उचित फल प्राप्त होता है।
6. मंत्र का पाठ:
ऊपर बताई गई सभी बातों का पालन करने के बाद अब आप शिव तांडव स्तोत्र का पाठ शुरू कर सकते हैं। मंत्र का ध्यानपूर्वक और विधिपूर्वक जाप करें।
7. ध्यान और ध्यान के लिए एक साथी बनाएं:
इस पाठ को पढ़ते समय एकाग्रचित्त होकर भगवान शिव की मूर्ति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
8. अर्पण:
स्तोत्र का पाठ पूरा करने के बाद सच्चे मन से भगवान शिव से प्रार्थना करें और स्वयं को समर्पित कर दें।
9. कर्ण:
इसके बाद अपने कर्णों को धो लें और उंगलियों से पानी की बूंदें टपका लें।
10. नियमों का पालन:
नियमित रूप से भगवान शिव स्तोत्र का पाठ करने का प्रयास करें और नियमों का भी ध्यान रखें, इससे आपको आध्यात्मिक मार्ग की ओर रुझान मिलेगा।
स्तोत्र का पाठ करते समय ध्यान, नियमों का पालन और आस्था जरूरी है। यह आपको आध्यात्मिक सफलता की दिशा में मदद करता है।
रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र(Shiva Tandav Stotra)
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥॥
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥॥
धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे(क्वचिच्चिदम्बरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥॥
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥॥
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥॥
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥॥
अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥॥
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥॥
इति श्रीरावण कृतम्
शिव ताण्डव स्तोत्र संपूर्णम